काश केरल इंडिया में होता… काश श्रीजीत कश्मीरी होता!

इस देश में मानवाधिकार और अत्याचार विरोध के नाम पर एक बड़ा तबका सक्रिय है। देश में कहीं भी, कुछ भी घट रहा हो जिसमें ऊपरी तौर पर, सतही तौर पर कोई हिंदू अपराधी है तो यह वर्ग धड़ल्ले से आगे आकर अपनी बातें सामने रखता है। मेंढक को जिस तरह बारिश की सुगबुगाहट लगती है, गिद्ध को जैसे मांस की बू आती है, मच्छरों को जैसे गटर की खबर लगती है और चीटियों को जैसे गुड़ का पता चल लगता है वैसे ही इन लोगों को अत्याचार, ज़ुल्म और अन्याय आदि की सुगबुगाहट लगती है और तरह-तरह के चोलों में यह लोग सामने आने लगते है। लिबरल, सेकुलर माध्यमों के कृपा प्रसाद से इन्हें अच्छी खासी सुर्खियां भी मिल जाती है। इनकी शर्त बस इतनी होती है, कि इन सारी घटनाओं में पीड़ित व्यक्ति हिंदू नहीं होना चाहिए या उसे अपने भारतीयता पर गर्व नहीं होना चाहिए।

ऐसा नहीं होता तो इन लोगों के रडार पर सिर्फ कश्मीर के आतंकवादी या बस्तर के नक्सली नहीं होते। केरल में जिस तरह अपने भारतीय होने पर गर्व करने वालों पर जुल्म हो रहे है उसकी सुध बुध वह लोग जरूर लेते। श्रीनगर में किसी को जीप से बांधने पर इनका दिल जिस तरह कसमसाता है वैसे ही केरल में किसी का हाथ पांव तोड़ने पर उनके मन में टीस उठती।

अभी ताजा बात लीजिए। पिछले 2 दिनों से केरल जल रहा है। जम्मू कश्मीर के कठुआ और उत्तर प्रदेश के उन्नाव की घटनाओं के विरोध में केरल की कुछ कथित न्यायवादी संगठनों ने जगह-जगह मोर्चे निकालें। अब केरल में तो कम्युनिस्टों का राज है और जैसे कि कम्युनिस्ट शासन में होता ,है हर विरोध प्रदर्शन हिंसा में तब्दील हो जाता है। उसी तरह राज्य में कई स्थानों पर हिंसा हुई। खासकर कासरगोड जिले में नडप्पुरम, वडक्करा और पेरंबरा इन जगहों पर बुधवार को हुई हिंसा की कई घटनाएं दर्ज हुई। विलियापल्ली नामक गांव में भाजपा के कार्यालय पर हमला हुआ। पेरंबरा में शिवाजी सेना नामक संगठन के दो कार्यकर्ताओं पर बम हमला हुआ। अंदेशा यह है, कि यह हमला सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने किया।

केरल पुलिस का कहना है, कि कठुआ उन्नाव की घटनाओं के विरोध विभिन्न संगठनों ने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। पुलिस ने कहा कि हमने 900 लोगों को गिरफ्तार किया है। ये सभी लोग 16 अप्रैल को हड़ताल के नाम हिंसा कर रहे थे। गौरतलब है कि इस हड़ताल की पूर्व सूचना पुलिस को नहीं दी गई थी। ‘चलो कोजीकोड’ नामक इस मार्च की अपील व्हाट्सअप के माध्यम से एसडीपी के कार्यकर्ताओं ने फैलाई थी।

कुछ इसी तरह का मामला श्रीजीत का है। श्रीजीत नामक युवक को पुलिस ने एक खून के सिलसिले में गिरफ्तार किया था। पुलिस का कहना था की मृतक व्यक्ति के बेटे ने सृजित का नाम लिया था, इसलिए उसे गिरफ्तार किया गया था। हालांकि पुलिस कस्टडी में उसकी मौत हो गई। बाद में स्थानीय मीडिया ने जब मामला उछाला और उसकी तहकीकात की, तो पुलिस का यह बयान सफेद झूठ निकला। खुद मृतक के व्यक्ति ने कहा कि उसने श्रीजीत का नाम कभी नहीं लिया था। पूरी फजीहत होने के बाद सरकार ने सात पुलिसकर्मियों को निलंबित किया। इन पुलिसकर्मियों ने ताजा आरोप किया है, कि उन्हें फंसाया जा रहा है और वास्तविक दोषी कोई और है। यह कोई मायने नहीं रखता, कि श्रीजीत दलित था। चूंकि वह भाजपा से संबंधित था इसलिए उसका मरना वाजिब था शायद। 

लेकिन इस मामले की रत्ती भर भी रिपोर्टिंग खुद को राष्ट्रीय मीडिया कहलाने वालों ने या मानवाधिकार के पैरोकारों ने नहीं की। उनके लिए यह मामला जैसे कभी हुआ ही नहीं। और राज्य में कम्युनिस्टों द्वारा मारे गए अनगिनत संघ भाजपा या कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तो हम बात ही नहीं कर रहे है। इस दोगलेपन को लिबरिजम या उदारवाद या सेकुलरिज्म कहते है।

लुटियंस की नगरी में सुस्थापित लिबरलियों और सेकुलरों के लिए आइडिया ऑफ इंडिया बहुत मायने रखती है। जब भी भारत की बात आती है, भारतीय परंपराओं का बखान होता है तब इस नेहरूवादी आइडिया ऑफ इंडिया की बातें काफी उछाली जाती है। चूंकि केरल में कम्युनिस्टों का दबदबा है और कम्युनिस्टों की हिंसा के भुक्तभोगी हिंदुत्ववादी शक्तियां है, इसलिए शायद उनके आइडिया ऑफ इंडिया के मानचित्र में केरल नहीं आता है। उनके मानवीय सरोकारों में श्रीजीत जैसे लोग नहीं आते है, क्योंकि शायद वह मनुष्य ना हो या फिर अधिकार प्राप्त करने की योग्यता उन मानवों में नहीं हो। बहरहाल, इस दोगलेपन का अपना एक तंत्र है जो हमें इससे अवगत नहीं होने देता। विचारों के परदे के पीछे उसे छुपाये रखता है।

शुक्र है हमारे पास सोशल मीडिया जैसे वैकल्पिक समाचार स्रोत है जिनके कारण यह दोगलापन समय-समय पर उजागर होता है। लेकिन एक चिंतित नागरिक के नाते यह विचार मन में अपने आप आता है, कि काश! इनके इंडिया में केरल होता, कि काश! श्रीजीत भी कश्मीरी होता!